आगरा
सत्ता की हनक और नोटों की चमक के आगे आगरा पुलिस प्रशासन फेल हो गया। जोंस मिल की अरबों की संपत्ति के जिस मुकदमे में बड़ी कार्रवाई की प्लानिंग की जा रही थी उसकी विवेचना ही आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) स्थानांतरित हो गई। फरवरी से मई तक जांच के लिए गठित एसआईटी साक्ष्य संकलन का खेल खेलती रही। वैसे प्रतिवादी के कहने पर विवेचना स्थानांतरित नहीं होती।
जोंस मिल कंपाउंड में सरकारी जमीनों पर कब्जे होते रहे। जमीनें बिकती रहीं। निर्माण होते रहे। सरकारी विभाग एनओसी देते रहे। इस तरफ कभी किसी का ध्यान नहीं गया। नोटों की चमक ने संबंधित विभागों की आंखें बंद कर दी थीं। 19 जुलाई 2020 की शाम जोंस मिल कंपाउंड में धमाका हुआ। पुलिस ने पहले इसे सिलेंडर का विस्फोट साबित करने का प्रयास किया। मामला अधिकारियों तक पहुंचा। जांच हुई तो पता चल कि बम धमाका था। सीसीटीवी फुटेज खंगाले गए। छानबीन में पता चला कि सोढ़ी ट्रांसपोर्ट का गोदाम खाली कराने के लिए धमाका कराया गया था। पुलिस ने मुकदमा दर्ज किया। रज्जो जैन सहित नौ लोगों को जेल भेजा गया। गैंगस्टर का मुकदमा लिखा गया। इस मामले को पुलिस प्रशासन ने गंभीरता से लिया। डीएम प्रभु नारायण सिंह ने जोंस मिल कंपाउंड की जमीन के सौदों की जांच के लिए आठ सदस्यीय एक कमेटी बनाई। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अरबों की सरकारी संपत्ति खुर्द-बुर्द की गई है।
पुलिस चौकी के लिए जो जमीन आवंटित थी। उस पर भी कब्जा हो गया है। डीएम के आदेश पर लेखपाल ने मुकदमा दर्ज कराया। पुलिस ने पहले मुकदमा भी धोखाधड़ी की धारा 420 के तहत लिखा। इस पर सवाल उठे तो कूटरचित दस्तावेज तैयार करना और छल के लिए उनका प्रयोग की धाराएं बढ़ाई गईं। मुकदमे में चर्चित रज्जो जैन, सरदार कंवलदीप सिंह और मातंगी बिल्डर के मालिक हेमेंद्र अग्रवाल उर्फ चुनमुन को नामजद किया गया। पुलिस ने मार्च में चुनमुन अग्रवाल को नाटकीय अंदाज में गिरफ्तार किया। अन्य दो आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए दबिश-दबिश का खेल खेला गया। दोनों आरोपियों को अदालत से अग्रिम जमानत मिल गई। अदालत में कमजोर पैरवी के चलते आरोपित बिल्डर को भी जमानत मिल गई।
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