मानव समाज के अध्ययन को समाजशास्त्र कहते हैं। भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार पूरी दुनिया में मनुष्य की सामाजिक संरचना बदल जाती है। हर समाज की अलग- अलग परंपराएं होती हैं। आधुनिकीकरण और बढ़ती सामाजिक जटिलताओं के कारण अब समाजशास्त्र के अंतर्गत चिकित्सा, सैन्य संगठन, जन संपर्क और वैज्ञानिक ज्ञान का भी अध्ययन किया जाता है। आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रणालियों सहित समाजशास्त्र की शुरुआत भी पश्चिमी देशों से ही हुई। समाजशास्त्र, समाज में रहने वाले लोगों से जुड़ा हुआ विषय है। सीधा समाज से जुड़ा होने के कारण आज के दौर में इसका बड़ा महत्त्व है। मौजूदा दौर में इसकी तुलना एमबीए से की जाती है। इसमें रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। यह विषय न केवल साधारण है बल्कि रोचक भी है। समाज की जीवन में अहम भूमिका है और इसी समाज का अध्ययन इस विषय में किया जाता है। यही वजह है कि इस विषय का इतना महत्त्व है।
शैक्षणिक योग्यता
समाजशास्त्र में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए कला संकाय में स्नातक होना आवश्यक है। इसके साथ सोशल साइंस, पोलिटिकल साइंस, इंटरनेशनल रिलेशन, साइकोलॉजी और ह्यूमेनिटी का व्यावहारिक ज्ञान होना जरूरी है। पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद इसमें पीएचडी की जा सकती है।
समाज शास्त्र का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि 14वीं शताब्दी के उत्तर अफ्रीकी अरब विद्वान इब्न खल्दून प्रथम समाजशास्त्री थे, जिन्होंने सामाजिक एकता और सामाजिक संघर्ष के वैज्ञानिक सिद्धांतों को पहली बार उजागर किया। एक विषय के रूप में समाजशास्त्र की शुरुआत सबसे पहले 1890 में अमरीका के कंसास विश्वविद्यालय में हुई। 1891 ई. में कंसास विश्वविद्यालय में इतिहास और समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गई। समाजशास्त्र में अंतरराष्ट्रीय सहयोग 1895 में शुरू हुआ। 1905 में सारी दुनिया के पेशेवर समाजशास्त्रियों के संगठन की स्थापना हुई। एक विषय के रूप में समाशास्त्र सर्वप्रथम 1890 में अमरीका के कंसास विश्वविद्यालय में पढ़ाया गया।
क्यों खास है समाजशास्त्र
मनुष्य एक समाजिक प्राणी है। बिना समाज के मनुष्य जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस वजह से समाज का महत्त्व बढ़ा है और जरूरत बढ़ी है समाजशास्त्र की। समाजशास्त्र यह जानने के लिए जरूरी है कि जिन परिस्थितियों में हम रह रहे हैं, उनकी विसंगतियों को कैसे दूर किया जाए। इस तरह यह अपने पारंपरिक मूल्यों व बाहरी दुनिया के बीच संतुलन बनाने तथा व्यक्तिगत व सार्वजनिक क्रियाओं को पूरा करने का विवेक भी देता है। एक तरह से कहा जाए तो सभी तरह की नीतियों और रणनीतियों का संबंध मानव जीवन की उन्नति से जुड़ा होता है। इसलिए करियर के लिहाज से इस विषय का महत्त्व स्वता ही बढ़ जाता है। मानव सभ्यता, संस्कृति, सोसायटी, जातीयता और सामाजिक संगठन आदि की जानकारी से हम अपने वर्तमान को अधिक बेहतर बना सकते हैं।
रोजगारपरक है विषय
देश में नए उद्योग, विद्युत प्रोजेक्ट और सीमेंट कारखाने लग रहे हैं। यहां पर इस विषय के जानकारों की जरूरत है। यह एक प्रोफेशनल विषय है। यदि आपको नौकरी नहीं करनी है तो आप एनजीओ बनाकर समाजसेवा कर सकते हैं। कंपनियां जहां अपना प्रोजेक्ट लगाती हैं, वहां श्रमिकों के पुनर्वास के लिए योजना बनाने के लिए समाजशास्त्रियों की मदद लेती हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य को देखते हुए यह करियर ज्यादा रोजगारपरक है। स्कूलों और कालेजों में इस विषय की काफी डिमांड होने से इस का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा कई गैर सरकारी संगठन भी हैं, जिनमें समाजशास्त्रियों की बहुत डिमांड रहती है।
रोजगार के अवसर
आज दुनिया में हजारों की संख्या में स्वयंसेवी संस्थाएं, मानवीय, सामाजिक, पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान में जुटी हुई हैं और इसी कारण संस्थानों को बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की आवश्यकता है, जिनमें न केवल सेवा का जज्बा हो, अपितु संबंधित क्षेत्र की जानकारी भी हो। अंतरराष्ट्रय स्तर पर काम करने वाली संस्थाएं जैसे यूनीसेफ, रेडक्रॉस तो हर वर्ष समाजशास्त्र एवं समाज कार्य में विशेषज्ञों की खोज में बड़े-बड़े शहरों में सेमिनार का आयोजन करती हैं। इन संस्थाओं में निदेशक, प्रोग्राम आफिसर, टीम लीडर जैसे उच्च पदों पर अच्छे वेतनमान के साथ नियुक्ति दी जाती है। इसके अलावा अन्य कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां छात्रों को को.आर्डिनेटर, सर्वे आफिसर या पब्लिक रिलेशन आफिसर जैसे उच्च पदों पर कार्य करने का मौका मिलता है। अपराध विज्ञान और सुधारात्मक प्रशासन में विशेषज्ञता रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता, जेल, सुधारगृहों, बालगृहों जैसे स्थानों में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं।
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