कराची
पाकिस्तान में वर्ष 1947 में देश के विभाजन के बाद से हिंदू-सिखों की संपत्तियां कट्टरपंथियों और सरकार के निशाने पर हैं। अब वहां पर एक प्राचीन धर्मशाला को तोड़कर मल्टीप्लेक्स बनाने की कार्रवाई शुरू हो गई है। जिसका हिंदू समाज विरोध कर रहा है।
पाकिस्तानी कट्टरपंथियों को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब देश की सर्वोच्च अदालत में तीन सदस्यीय बैंच ने हिंदुओं की धर्मशाला पर किसी भी तरह के अतिक्रमण और उसे तोड़ने की कार्रवाई तुरंत प्रभाव से रोकने के आदेश दिए। यहीं हिंदू मंदिर भी है। करीब 716 स्वायर यार्ड में बनी इस धर्मशाला को स्थानीय बहुसंख्यक कट्टरपंथी समुदाय नष्ट कर यहां एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाना चाहता है।
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने तीन जजों की पीठ का नेतृत्व करते हुए सिंध प्रांत के सचिव को एक व्यापक रिपोर्ट पेश करने के लिए नोटिस भी जारी किया। यह मामला खैबर पश्तूनख्वा में टेरी गांव का है जहां पिछले 30 दिसंबर को करीब 1,000 से ज्यादा लोगों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए हिंदू मंदिर में तोड़फोड़ की और उसे वहां से हटाने की मांग की थी।
प्रदर्शनकारियों ने धार्मिक नारेबाजी कर मंदिर में आग भी लगाई थी। इस मामले में कट्टरपंथियों का साथ वहां की एक धार्मिक सियासी पार्टी ने दिया था। 11 जून को हुई सुनवाई में पाकिस्तान हिंदू परिषद के संरक्षक डॉ. रमेश कुमार वंकवानी ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान उस इमारत की ओर आकर्षित किया, जिसे उनके अनुसार, एक वाणिज्यिक प्लाजा के निर्माण के लिए रास्ता बनाने के मकसद से ध्वस्त किया जा रहा था।
सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा फैसले को पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदुओं की बड़ी जीत माना जा रहा है। यह फैसला डॉ. रमेश वंकवानी की अदालत का ध्यान खींचने वाली 11 जून की याचिका के बाद आया है। वंकवानी ने बताया था कि सिंध हाईकोर्ट से अनुमति लेने के बाद संपत्ति को निजी व्यक्तियों को पट्टे पर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने तीन पन्नों के आदेश में लिखा है कि वंकवानी द्वारा पेश तस्वीरों में स्पष्ट है कि धर्मशाला की इमारत 1932 में बनाई गई थी जिसे संगमरमर के स्लैब से भी पढ़ा जा सकता है। ऐसे में इसे एक संरक्षित विरासत भवन होना चाहिए।
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