राम मंदिर ट्रस्ट में घोटाले का आरोप लगाने के लिए जनता से छुपाई ये सच्चाई: सांसद संजय सिंह


नई दिल्ली
आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह ने रविवार को आरोप लगाया कि राम मंदिर निर्माण हेतु हुई भूमि की खरीद में 16.5 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ है। इसके बाद देश की राजनीति में अचानक भूचाल आ गया। लेकिन अब श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का बयान सामने आने के बाद मामले का दूसरा पक्ष भी सामने आ गया है। आरोप है कि भूमि खरीद मामले की पूरी प्रक्रिया लोगों के सामने पेश नहीं की गई, जिसके कारण कुछ लोगों में भ्रम पैदा हुआ। विहिप का दावा है कि है कि इस मामले में किसी प्रकार का भ्रष्टाचार नहीं हुआ है।   

इस मामले पर श्रीराम मंदिर तीर्थ क्षेत्र निर्माण ट्रस्ट का पक्ष समझने के पहले यह समझ लेते हैं कि आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह ने क्या आरोप लगाये थे, और इसके लिए उनका आधार क्या था? आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने लखनऊ में, और उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्य मंत्री पवन पाण्डेय ने अयोध्या में रविवार 13 जून को अलग-अलग प्रेस कांफ्रेंस कर आरोप लगाया था कि श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए हुई भूमि की खरीद में 16.5 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ है।

इन नेताओं का आरोप है कि अयोध्या में गाटा संख्या 243, 244 और 246 को कुसुम पाठक और हरीश पाठक नाम के लोगों से दो करोड़ रुपये में सुल्तान अंसारी और रवि मोहन तिवारी नाम के दो लोगों ने खरीदा। आरोप है कि इस भूमि का वर्तमान बाज़ार मूल्य 5 करोड़ 80 लाख रुपये है जिसे केवल दो करोड़ रुपये में खरीदा गया। नेताओं ने आरोप लगाया कि इस खरीद फरोख्त के केवल पांच मिनट बाद ही वही भूमि 18.5 करोड़ रुपये में राम मंदिर ट्रस्ट को बेची गई, और इस प्रकार जो भूमि पांच मिनट पहले केवल दो करोड़ रुपये में खरीदी गई थी, पांच मिनट बाद ही उसे 16.5 करोड़ रुपये अधिक मूल्य चुकाकर 18.5 करोड़ रुपये में ट्रस्ट को बेच दी गई।

इस पूरी प्रक्रिया में अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय और राम मंदिर के ट्रस्ट के सदस्य अनिल मिश्रा गवाह थे। इन नेताओं ने अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए कोर्ट में हुई खरीद-बिक्री के पूरे दस्तावेज मीडिया के सामने पेश किए थे।

कम कीमत पर बिक्री के पीछे विहिप का कहना है कि यह भूमि उक्त क्रेताओं ने मूल विक्रेताओं से काफी समय पहले खरीद ली थी। इसके लिए केवल अनुबंध किया गया था, रजिस्ट्री नहीं की गई थी। उस समय उक्त भूमि की कीमत काफी कम थी, लेकिन चूंकि खरीद उसी समय की कीमत पर हुई थी, उसके लिए विक्रेताओं को दो करोड़ रुपये का ही भुगतान किया गया।

तकनीकी तौर पर जब तक यह भूमि इन खरीदारों के नाम पर ट्रांसफर न हो जाए, वे इसे ट्रस्ट को बेच नहीं सकते थे, और भूमि का नाम स्थानांतरण भी नहीं हो सकता था। इसलिए पहले यह भूमि मूल खरीदारों से दूसरे खरीदार के नाम पर ट्रांसफ़र करनी पड़ी, और उसके बाद उनके द्वारा इसे राम मंदिर ट्रस्ट को ट्रांसफर किया गया।  

भूमि की दो बार खरीदी-बिक्री करने के पीछे के इस कारण को लोगों के सामने नहीं लाया गया, जिससे यह भ्रम बना कि भूमि की खरीद में भ्रष्टाचार हुआ है। साथ ही, चूंकि अब अयोध्या और उसके आसपास की जमीनों की कीमत बढ़ चुकी है, और उत्तर प्रदेश सरकार या ट्रस्ट को इन बढ़ी कीमतों पर ही भूमि खरीद करनी पड़ रही है, विक्रेताओं को वर्तमान मूल्य (18.5 करोड़ रुपये) दिया गया है।

ट्रस्ट के नेता चंपत राय का तो यहां तक कहना है कि अगर बढ़े बाजार मूल्य की दृष्टि से तुलना करें तो यह भूमि वर्तमान मूल्यों से काफी कम कीमत पर खरीदी गई है। वर्तमान मूल्यों पर आज भी इस खरीद के मूल्य को आंका जा सकता है।  

अयोध्या के मेयर ऋषिकेश उपाध्याय ने कहा है कि घोटाले के आरोप बेबुनियाद और दुर्भावनापूर्ण हैं। जिन लोगों को हमेशा से राम नाम से परेशानी रही है, वे ही पूरी सच्चाई जाने बिना इस तरह के आरोप गढ़कर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि एक मेयर होने के कारण वे इस पूरी खरीद-प्रक्रिया के गवाह रहे हैं। उक्त भूमि वर्षों पुराने अनुबंध पर थी। तकनीकी तौर पर जब तक यह खरीदारों के नाम पर न हो जाती, यह ट्रस्ट को स्थानांतरित नहीं की जा सकती थी। यही कारण है कि पहले इसे उक्त अनुबंधकर्ता के नाम पर ट्रांसफर कराना पड़ा, और उसके बाद उसे ट्रस्ट को स्थानांतरित किया गया।

The Naradmuni Desk

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