हंगरी के PM को टालना पड़ा चीनी यूनिवर्सिटी कैंपस खोलने का फैसला


बुडापेस्ट
इसे यूरोप में फैली चीन विरोधी भावनाओं का ही एक संकेत माना गया है कि हंगरी सरकार को यहां एक चीनी विश्वविद्यालय का परिसर खोलने की मंशा टालनी पड़ी है। अब सरकार ने इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराने का फैसला किया है।

पिछले कई दिनों से हंगरी में इस परियोजना के खिलाफ जन प्रदर्शन हो रहे थे। उससे बने दबाव के आगे तानाशाह बताए जाने वाले प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बन को आखिरकार झुकना पड़ा।

गौरतलब है कि बुडापेस्ट में चीनी विश्वविद्यालय का परिसर खोलने के मुद्दे पर हंगरी में ऑर्बन विरोधी ताकतें एकजुट हो गई हैं। हंगरी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने सोमवार को कहा कि अब इस परियोजना के बारे में राजधानी बुडापेस्ट में जनमत संग्रह कराया जाएगा।

उन्होंने कहा कि अभी विश्वविद्यालय परिसर संबंधी ब्योरा तैयार करने में 18 महीने लगेंगे। उसके बाद ये सवाल जनता के सामने रखा जाएगा। यानी मामला फिलहाल टल गया है।

पिछले महीने प्रधानमंत्री विक्टर ऑर्बान फुदान विश्वविद्यालय का कैंपस बुडापेस्ट में खोलने के प्रस्ताव पर राजी हो गए थे। फुदान यूनिवर्सिटी को चीन के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में एक माना जाता है।

अगर तय कार्यक्रम के अनुसार बात आगे बढ़ती तो 2024 तक इस यूनिवर्सिटी का परिसर यहां काम करने लगता। यह यूरोपियन यूनियन से जुड़े किसी देश में शंघाई स्थित इस यूनिवर्सिटी का पहला कैंपस होता।

हंगरी के विपक्षी दलों शुरुआत इस परियोजना का कड़ा विरोध किया। उन्होंने आरोप लगाया कि इस कैंपस पर जरूरत से ज्यादा धन खर्च किया जा रहा है। हालांकि इस पर कितना खर्च आएगा, ये सरकार ने नहीं बताया था, लेकिन लीक हुए दस्तावेजों के आधार पर कहा गया कि 64 एकड़ इलाके में बनने वाले कैंपस पर 1.8 अरब डॉलर की रकम खर्च होगी। इसमें से 20 फीसदी हिस्सा हंगरी सरकार अपने खजाने से खर्च करती। बाकी हिस्सा एक चीनी बैंक से मिलने वाले कर्ज से पूरा किया जाता।

आलोचकों का कहना है कि इस कैंपस के जरिए चीन अपने पांव यहां जमा लेगा। ये आरोप भी लगाया गया कि अपनी तानाशाही प्रवृत्तियों के कारण ऑर्बान चीन के साथ संबंध बना रहे हैं, जहां शासन तानाशाही व्यवस्था से चलता है। इस परियोजना के खिलाफ मुहिम बुडापेस्ट के मेयर ग्रेगरी काराक्सोनी ने छेड़ी। पिछले हफ्ते उन्होंने एलान किया था कि वे यूनिवर्सिटी कैंपस जाने वाली सड़कों के नाम इस तरह रख देंगे, जिसे देख कर चीनी नाराज होंगे।

उन्होंने कहा कि इन रास्तों का नाम फ्री हांगकांग रोड, उइघुर शहीद रोड, दलाई लामा रोड और बिशॉप शिगुआंग रोड रखा जाएगा। बिशॉप शिगुआंग एक कैथोलिक पादरी थे, जिन्हें चीन में देश विरोधी गतिविधियों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

बीते शनिवार को बुडापेस्ट की सड़कों पर हजारों लोगों ने यूनिवर्सिटी कैंपस खोलने की योजना के विरोध में प्रदर्शन किया। उस दौरान आरोप लगाया गया कि ऑर्बन चीन को खुश करने के लिए हंगरी के हितों के बलि चढ़ा रहे हैँ।

गौरतलब है कि मेयर काराक्सोनी हंगरी में अगले साल होने वाले संसदीय चुनाव में विपक्षी गठबंधन का चेहरा बनने की कोशिश में जुटे हैं। इस बारे में इस साल अक्टूबर तक एलान होगा। इस गठबंधन में शामिल दलों को 2018 के चुनाव में 46 प्रतिशत वोट मिले थे। तब उन्होंने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। माना जा रहा है कि गठबंधन में शामिल होने के बाद ये दल अगले चुनाव में ऑर्बान की पार्टी को हरा सकते हैँ।

The Naradmuni Desk

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