पटना
बिहार के कद्दावर नेता रहे रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी में दो फाड़ हो गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास के भाई के पशुपति पासवान ने पांच सांसदों को साथ लेकर अब पार्टी पर अपना अधिकार जता दिया है। इससे पासवान के बेटे चिराग अकेले पड़ गए हैं। हालांकि एलजेपी की इस अंदरुनी कलह की शुरुआत बिहार विधानसभा चुनाव से ही शुरू हो गई थी। पार्टी के नेता और सांसद लंबे समय से चिराग पासवान के अहंकारी स्वभाव और उनके द्वारा मनमर्जी से लिए जा रहे फैसलों से नाराज चल रहे थे। जनवरी माह से ही उन्हें हटाने की पटकथा लिखी जाने लगी थी।
बिहार एलजेपी से जुड़े एक विश्वस्त सूत्र ने बताया कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान से ही पार्टी में उठापटक देखने को मिल रही है। चिराग पासवान ने जब राज्य के बड़े नेताओं और सांसदों की राय को दरकिनार करते हुए एनडीए छोड़ने का फैसला लिया उसी दिन से सभी उनसे नाराज चल रहे थे। सभी का मत था कि चिराग को सक्रिय राजनीति का उतना अनुभव नहीं है जितना अन्य पार्टी के नेताओं को है। चिराग अगर ऐसे ही बचकाने निर्णय लेते रहे तो पार्टी का बिहार में अस्तित्व खत्म हो जाएगा। चिराग का पार्टी कार्यकर्ताओं के अलावा नेताओं और सांसदों के साथ भी व्यवहार ठीक नहीं है। वे आज भी अपनी 'हीरो' की इमेज से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। इसी वजह से कार्यकर्ता भी उनसे खुश और संतुष्ट नहीं हैं।
सूत्र ने बताया कि बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही चिराग पासवान ने अपने दिल्ली स्थित 12 जनपथ रोड़ पर पार्टी के संसदीय दल की एक बैठक बुलाई थी। बैठक पार्टी के दो सांसदों ने सुझाव देते हुए कहा था कि हम एनडीए छोड़कर और नीतीश कुमार के खिलाफ जाकर गलत कर रहे हैं। इससे पार्टी को राज्य में नुकसान हो सकता है। हमें स्वर्गीय रामविलास पासवान की पुरानी नीति को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए। सांसदों के इस सुझाव को चिराग ने अनदेखा करते हुए तल्खी भरे अंदाज में सांसदों से कहा कि मैं अपना मन बना चुका हूं। हमारा दल नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरेगा। आप सभी को इस फैसले के साथ ही चलना होगा। बाकि जो मेरे निर्णय के साथ नहीं वह पार्टी से जा सकता हैं।
सूत्र ने आगे कहा कि चुनाव सिर पर होने और रामविलास पासवान की मृत्यु को कुछ ही दिन हुए थे इसलिए सभी सांसद मौन रहे। लेकिन चिराग के इस फैसले और अहंकार भरे रवैये के कारण पार्टी के भीतर बगावत के स्वर बुलंद होने लगे थे। ये आवाज तब और तेज हो गई जब एलजेपी को बिहार विधानसभा चुनाव में पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के मुकाबले बेहद हताशाजनक परिणाम देखने को मिले। चुनाव में पार्टी को केवल एक ही सीट मिली।
बाद में लोजपा विधायक राज कुमार सिंह जेडीयू में शामिल हो गए। अब लोजपा का बिहार विधानसभा या विधान परिषद में कोई विधायक नहीं है। चुनाव परिणाम के बाद से ही पार्टी के भीतर चिराग के बचकाने निर्णय और उन्हें हटाने को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थीं। वहीं कुछ लोगों की नाराजगी इस बात को लेकर भी थी कि चिराग के कुछ चुनिंदा सिपहसालार ही पार्टी को चला रहे थे। जैसा वे कहते चिराग वैसा करते जाते।
सूत्र ने आगे बताया कि चिराग पासवान के चाचा पशुपति पारस जनवरी महीने से चिराग के खिलाफ तैयारी कर रहे थे। पार्टी कुछ नेता और सांसद इस मुद्दे को लेकर दिल्ली में अलग-अलग बैठक कर रहे थे। खेमों में हो रही इन बैठक का नेतृत्व शुरू से ही पशुपति पारस कर रहे थे। इन बैठकों की थोड़ी बहुत जानकारी चिराग को थी, लेकिन उनको इस बात का अंदाजा नहीं था कि पार्टी में वे इस तरह से अलग-थलग पड़ जाएंगे। पार्टी में इस कलह का सबसे बड़ा कारण चिराग का बर्ताव है। इसी कारण हालिया संसद के सत्र में भी अलग थलग नजर आए।
चिराग को सबसे ज्यादा भरोसा अपने चचेरे भाई और समस्तीपुर से सांसद प्रिंस राज पर था। प्रिंस राज और चिराग कई बार एक ही गाड़ी में संसद आते थे। लोकसभा से लेकर सेंट्रल हाल में भी एक साथ ही देखे जाते थे। लेकिन प्रिंस राज चिराग से उस वक्त से नाराज चल रहे थे जब से उनके प्रदेश अध्यक्ष पद में बंटवारा कर दिया गया था और कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी को बनाया गया था।
चिराग के चाचा और हाजीपुर से सांसद पशुपति पारस तब से नाराज चल रहे हैं, जब से चिराग ने जेडीयू का साथ छोड़ा। पारस बिहार की नीतीश में पशुपालन मंत्री भी रह चुके हैं। पारस और नीतीश के संबंध बेहद मधुर हैं। लेकिन चिराग ने जेडीयू का साथ छोड़कर पारस के रिश्ते खराब कर दिए। विधानसभा चुनाव के समय भी पारस ने चिराग को बार-बार समझाया कि यह कदम जोखिम भरा होगा लेकिन चिराग नहीं माने। ऐसे में पारस मन में खीझ लेकर सब कुछ देखते रहे और जब वक्त आया तो चिराग के खिलाफ दांव चल दिया।
Comments
Add Comment