नई दिल्ली
देश के कई शहरों में पेट्रोल के दाम 101 से 103 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं। कई हिस्सों में लॉकडाउन के कारण तेल की खपत भी कम हो रही है और विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम भी कम हैं, फिर भी भारत में तेल क्यों महंगा है? यह समझने के लिए हमें पेट्रोल डीजल के दामों का गणित समझना होगा। इसका कच्चे तेल की कीमत व टैक्स ही आधार नहीं हैं।
दरअसल एक फॉर्मूला है, जिसके आधार पर पेट्रोल पंप पर बिकने वाले ईंधन के दाम तय होते हैं। इसमें कच्चे तेल के दाम, परिवहन, रिफाइनरी का खर्च, केंद्र व राज्य सरकारों के कर, पंपों का कमीशन जैसी तमाम चीजें शामिल होती हैं।
यह सच है कि भारत अपनी जरूरत का अधिकांश ईंधन आयात करता है। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) द्वारा तय की जाती है। भारत को भी ओपेक द्वारा तय दर पर कच्चा तेल खरीदना पड़ता है। लेकिन जब कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, तब भी भारत में उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल के लिए ऊंची कीमत चुकाते हैं, यह माजरा समझना होगा।
पंपों पर ग्राहकों को बेचे जाने वाले तेल की कीमत ट्रेड पैरिटी प्राइसिंग (टीपीपी) फॉर्मूले से तय होती है। इसका 80:20 का अनुपात रहता है। यानी देश में बेचे जाने वाले पेट्रोल-डीजल के मूल्य का 80 प्रतिशत हिस्सा विश्व बाजार में वर्तमान में बेचे जा रहे ईंधन के दामों से जुड़ा होता है। शेष 20 फीसदी हिस्सा अनुमानित मूल्य के अनुसार जोड़ा जाता है। जानकारों का कहना है कि भारत में कच्चे तेल के शोधन और मार्केटिंग की लागत का पंपों पर ईंधन के असल दामों से कोई लेना-देना नहीं है।
पेट्रोल की कीमत मुंबई व भोपाल जैसे शहरों में 100 के पार पहुंच चुकी हैं। दिल्ली में दाम लगभग 95 रुपये प्रति लीटर हैं। रिजर्व बैंक ने तेल के दामों में उछाल पर लगाम के लिए सुझाव दिए हैं। बैंक के अनुसार मूल्यवृद्धि की मुख्य वजह केंद्र और राज्यों द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए जाने वाले टैक्स हैं।
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