भोपाल
थानों में बच्चों से जुड़े मामलों को देखने वाले पुलिसकर्मियों को अब पुलिस अधीक्षक आसानी से नहीं हटा सकेंगे। इस मामले में पुलिस अधीक्षकों को पुलिस मुख्यालय ने बालकों की देखरेख और संरक्षण के लिए बने किशोर न्याय अधिनियम का हवाला देकर पुलिस अधीक्षकों को तबादला कितने समय तक नहीं किया जा सकता, यह याद दिलाया है। इस आदेश के बाद पुलिस अधीक्षक तीन साल से पहले ऐसे पुलिसकर्मियों को नहीं हटा सकेंगे जो बच्चों से जुड़े मामले देख रहे हैं।
प्रदेश के थानों में पदस्थ बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (सीडब्ल्यूपीओ) और विशेष किशोर पुलिस इकाई (एसजेपीयू) का तबादला अब पुलिस अधीक्षक तीन साल से पहले नहीं कर सकेंगे। इस संबंध में पुलिस मुख्यालय ने भोपाल-इंदौर के डीआईजी सहित सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिए हैं।
बताया जाता है कि कुछ जिलों से बात सामने आई की पुलिस अधीक्षक सीडब्ल्यूपीओ और एसजेपीयू के तबादले बार-बार कर रहे हैं। इसकी जानकारी पुलिस मुख्यालय को पहुंची, जिसमें यह भी पता चला कि ऐसे में बच्चों से जुड़े अपराध और उनके पुनर्वास के काम में अड़चन आ जाती है। जिस पर पुलिस मुख्यालय ने गंभीरता से विचार करते हुए सभी पुलिस अधीक्षकों को इस संबंध में ताकीत किया कि तीन साल से पहले तबादला नहीं किया जाए।
किशोर न्याय अधिनियम के क्रियांवयन के लिए इस साल मार्च में महिला बाल विकास विभाग ने विभिन्न विभागों की बैठक ली थी, बैठक में यह बताया गया था कि तीन साल से पहले बाल कल्याण पुलिस अधिकारी और विशेष किशोर पुलिस इकाई के चार्ज में रहने वाले अफसर का तबादला किसी अन्य इकाई में नहीं किया जाए। इसके बाद भी इनके तबादले जिला स्तर पर किए जा रहे हैं।
बाल कल्याण पुलिस अधिकारी प्रदेश के अधिकांश थानों में पदस्थ होते हैं। थाने में कोई बच्चा शिकायत करने आए या किसी मामले में बच्चा आरोपी हो तो यह अधिकारी सादा कपड़ों में उस बच्चे से बात करते हैं, ताकि बच्चों को थाने के माहौल से अलग सामान्य माहौल मिल सके। यह अधिकारी महिला बाल विकास विभाग सहित बाल न्यायालय आदि से भी लगातार संपर्क में रहते हैं। वहीं विशेष किशोर पुलिस इकाई में पदस्थ अफसर और कर्मी बच्चों के अपरहण आदि जैसे गंभीर अपराधों में स्थानीय पुलिस की मदद करते हैं। ऐसे में इस टीम में बार-बार बदलाव करने से बच्चों के हित संरक्षण में कई बार समस्या आ जाती है।
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