कीमत चुकाकर सफलता पाने वाले आम आदमी की कहानी है वेब सिरीज फैमली मैन 2


 - रिटायर्ड आईएएस और मुख्यमंत्री के ओएसडी आनंद शर्मा द्वारा की गई फैमली मैन 2 की समीक्षा

आम तौर पर फ़िल्मों या टीव्ही सिरीज़ में दिखाई जाने वाली कहानियों के नायक दुनियावी तकलीफ़ों से परे रहते हैं , एक से एक मुसीबतें और बाधाएं , सब चुटकी बजाते ही हल हो जाती हैं फिर छोटी मोटी पारिवारिक परेशानियों का तो कहना ही क्या | पर आम आदमी की दुनिया में इन सब परेशानियों का बड़ा अहम हिस्सा होता है ,चाहे वो कितना भी ख़ास काम क्यों ना कर रहा हो | मुझे याद आता है राजेंद्र यादव से एक बार किसी ने इंटरव्यू में पूछा कि मन्नू भण्डारी जैसी बड़ी लेखिका आपकी पत्नी हैं तो इससे आपके गृहस्थ जीवन में क्या अंतर पड़ता है | राजेंद्र यादव का जवाब था कोई नहीं , पानी ना आने पर या राशन समय से पहले ख़त्म हो जाने पर वो वैसा ही चिड़-चिड़ करती है जैसा आम पत्नियां करती हैं | फ़ैमिली मेन की सिरीज़ बस इसी शाश्वत सत्य की पैठ में रची गयी है |
सीजन 2 की कहानी शुरू करने से पहले ही मैं ये बता दूं तो ठीक रहेगा की इस कहानी में बहुत सारी घटनाओं का बिम्ब लिया जाकर क़िस्सा रचा गया है | इसमें श्रीलंका , तमिल सिंघली , पाकिस्तान आईएसआई , लव जिहाद ,नौकरशाही और राजनीति की अपनी अपनी मजबूरियों जैसे बहुतेरे मानकों को धार में ऐसा पिरोया गया है की आपको लगता है अरे ये तो इस बारे में बात हो रही है या उस घटना का ज़िक्र दिखा रहे हैं परंतु असल में ये किसी कालखंड में घटी सच्ची घटना की कहानी नहीं है |
अब बात करते हैं कहानी की ,प्रथम सत्र यदि आपने देखा हो तो आपको याद होगा कि श्रीकांत ( मनोज बाजपेई ) और उसके साथी दिल्ली में बमुश्किल गैस हादसा रोक पाते हैं और उसमें हुए नुक़सान से श्रीकांत अपने आप को दोषी मानता है | दूसरे सत्र की शुरुआत में ही पता लग जाता है की अपने परिवार की ख़ुशी और इस गिल्ट से निजात पाने के लिये श्रीकांत मुंबई शिफ़्ट हो जाता है और वहां एक मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी करने लगता है | अच्छा पैसा और सुकून से परिवार को समय देने के बावजूद मन ही मन वो टास्क ( एन आइ ए की यूनिट ) के रोमांचकारी दिनों को याद करता रहता है | वहीं उसकी पत्नी सुचित्रा ( प्रियमणि ) जो अब चैन से घर सम्भालने का सोच कर आयी थी अपनी पुरानी नौकरी के दिनों को याद करके और अरविंद ( शरद केलकर ) और श्रीकांत के बीच अपने सम्बन्धों को लेकर इतनी परेशान रहने लगती है की मनोचिकित्सक की मदद लेने लगती है , जिसमें वह श्रीकांत को भी शामिल करती है | इस बीच जेके तलपड़े ( शरीब हाशमी ) मुंबई आता है और वहां श्रीकांत की तरह टास्क छोड़ चुके मिलिंद ( सनी हिंदुजा ) से दोनों मिलने जाते हैं , वहां तीनों के मिल बैठ कर बात करने से पुराने ज़ख़्म भी हरे होते हैं , और जेके दोनों को टास्क में वापस आने को कहता है | श्रीकांत भी उसे समझाता है और आख़िर ज़ोया ( श्रेया धन्वन्तरि ) से मिलने के बाद वो वापस टास्क में शामिल हो जाता है |
उधर श्रीलंका में तमिल इलम के नेता भास्करन पर सेना का हमला होता है और उनका नेता भास्करन ( मिमे गोपी ) अपने साथी दीपन ( अजघम पेरूमाल ) के साथ इंग्लेंड भाग जाता है और उसका भई सुबू ( श्रीकृष्ण दयाल ) चेन्नई भाग आता है | तमिलों के लिए भारत दुश्मन देश नहीं है पर श्रीलंका के प्रेसिडेंट भारत की प्रधानमंत्री बासु ( सीमा बिस्वास ) पर दबाव डालते हैं की वो सुबू को उनके हवाले कर दे | राजनीतिक मजबूरी के चलते ये काम टास्क पर आता है और ऐन वक़्त पर जब सुबू पर क़ाबू पाना मुश्किल हो जाता है तो बम्बई में बैठा श्रीकांत अपने सम्बन्धों के बल पर अपने पुराने साथी चेल्लम से बात करके सुबू को आत्मसमर्पण के लिए राज़ी कर लेता है | टास्क का मुखिया कुलकर्णी ( दिलीप ताहिल ) श्रीकांत को फिर से टास्क में लौटने का आफ़र देता है | अपनी घर की परेशानियों से दो चार होता श्रीकांत उसकी बात मान कर अपने साथियों के पास चेन्नई चला जाता है | सुबू को वापस पाने की कोशिश करता भास्करन का ख़्वाब पूरा हो इसके पहले ही आइ एस आइ से बर्खास्त एजेण्ट मेजर समीर ( दर्शन कुमार ) अपना बदला लेने के लिये सुबू को एक बम विस्फोट में मौत के घाट उतरवा देता है | इस हादसे से भन्नाए भास्करन को मेजर समीर मिलकर बरगलाता है और हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री की हत्या का षड्यंत्र रचने में साथ मांगता है | भास्करन उसकी बात मान लेता है और चेन्नई में रह रहे अपने गुरिल्ला साथियों राज़ी ( समान्था अकिनेनी ) , और सेलवासरन ( आनन्द सामी ) को इस काम को अंजाम देने को कहता है और उनका साथ देने को समीर अपने आतंक के सहकारी साजिद ( साहब अली ) को उनके पास भेज देता है | राज़ी सिंहली सेना के आतंक की शिकार और तमिल इलम की ऐसी ट्रेण्ड कमाण्डो पायलेट है जो एक धागा फेक्टरी में काम करने के दौरान उसके सुपरवाइज़र के द्वारा जबरजस्ती की कोशिश करने पर निहत्थे ही उसकी हत्या करके उसके टुकड़े टुकड़े करके नाले में फेंक देती है | भास्करन और समीर के कहने पर सेलवासरन साजिद और राज़ी योजना बनाते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री और श्रीलंकाई प्रेसिडेंट के मिलने के स्थल को एक बारूद भरे प्लेन से उड़ा देंगे | इस काम के लिये एक बंद पड़े उड्डयन संस्थान को काम पर लिया जाता है |
मुम्बई में सुची अपने काम पर जाने लगी है और जल्द ही अपनी क़ाबिलियत से कम्पनी में सफलता के झण्डे गाड़ने लगती है , लेकिन घर में उसके बच्चे धृति ( अश्लेशा ठाकुर ) और अथर्व ( वेदांत सिन्हा ) मां बाप की लड़ाई से व्यथित दूसरे संसार में खोने लगते हैं | धृति किशोर बालिका है और साजिद के कहने पर सलमान ( अभय वर्मा ) कल्याण बन कर उसे अपने प्यार के जाल में फँसा लेता है , इस ख़याल से की वक़्त पड़ने पर श्रीकांत से पिछली बार का बदला ले सके |
सरकार में संबित ( विपिन शर्मा ) और कुलकर्णी ये पता लगा लेते हैं की तमिल इलम जो अपने को एक स्वतंत्र शासन घोषित कर चुके हैं के मुखिया भास्करन आइ एस आइ के समीर के साथ मिल कर प्रधानमंत्री के लिए कुछ घातक सोच रख रहे हैं | दोनों मिल कर पी एम को ये समझाने की कोशिश करते हैं की श्रीलंकाई प्रेसिडेंट से मिलने का समय या शहर बदलना ठीक रहेगा पर पी एम बसु कहती है कि ये देश के लिए ठीक नहीं होगा और श्रीलंका के साथ ये समझौता सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है जिसे टाला नहीं जा सकता | मज़बूर कुलकर्णी श्रीकांत को कहता है की किसी भी हालत में आतंकवादियों की कोशिश को रोका जाए | टास्क की फ़ोर्स को चेन्नई में पुलिस के अधिकारी मुत्तू ( रविंद्र विजय ) और उमयल ( देवदर्शनी ) का साथ अपने अभियान के लिए मिल जाता है जो ना केवल क्षेत्रीय भाषा के जानकर हैं बल्कि तमिल इलम की गतिविधियों के बारे में भी जानकारी रखते हैं , लेकिन इनकी लाख कोशिशों के बाद भी उन्हें चेन्नई में छिपे आतंकवादियों का कोई सुराग नहीं मिल पाता है | ऐसे में श्रीकांत फिर से अपने पुराने मित्र चेल्लम ( उदय महेश ) की सहायता लेता है और तमिल गुरिल्लों का सेफ़ हाउस का पता निकाल लेता है | संयोग से सेफ़ हाउस पहुंचने से पहले ही राज़ी वहां से निकल जाती है , हालांकि उसका चेहरा श्रीकांत और तलपड़े को याद रह जाता है | जब मुत्तू अपने साथी से श्रीलंकाई तमिलों के केम्प की तस्वीरों का विडियो निकलवाता है तो ये देख कर सब हैरान रह जाते हैं की राज़ी ना केवल कमाण्डो है बल्कि ट्रेण्ड पायलेट भी है | अपने मित्र चेल्लम के सहयोग से श्रीकांत और उसके साथी श्रीलंका पहुंचते हैं लेकिन इनके पहुंचने के पहले ही विष्फोटक सामग्री साजिद और राज़ी लेकर निकल जाते हैं | श्रीकांत इनके सहयोगी के घर डिटोनेटर लेने पहुँचता है तभी राज़ी उनके हाथ लग जाती है | राज़ी को लेकर श्रीकांत और मुत्तू स्थानीय थाने आ जाते हैं और राज़ी से उनकी योजना जानने की कोशिश करते हैं पर राज़ी मुँह नहीं खोलती है | मिलिन्द कहता है की उसे राज़ी से सख़्ती से मुंह खुलवाने की इजाज़त दी जाए लेकिन तभी साजिद स्थानीय अतिवादियों की सहायता से हमला कर राज़ी को छुड़ा ले जाता है और इसी गोलीबारी में मिलिंद की मौत हो जाती है | दुखी टास्क की फ़ोर्स के अधिकारी चेन्नई के अपने साथी अधिकारियों के साथ वापस चेन्नई लौट आते हैं | दो बातें तय हो जाती हैं पहली तो ये की श्रीकांत और उसके साथी ये जान जाते हैं की भास्करन के इशारे पर राज़ी और उसके साथी हवाई जहाज़ के माध्यम से हमला करेंगे और दूसरी ये साजिद को यक़ीन हो जाता है की श्रीकांत के रहते उसके हर काम में बाधा आयेगी |
साजिद अपने बंदे सलमान को कहता है की वो धृति का अपहरण कर ले | कल्याण के झांसे में आयी धृति अपनी मां से पढ़ाई का बहाना कर कल्याण से मिलने माल चली जाती है जहां फ़िल्म देखने के बाद ये कह कर की घर पर कोई नहीं है उसे फुसला कर सलमान अपने घर ले जाता है और उसके हाथ पैर बांध कर एक कमरे में बंद कर देता है | धृति की मारपीट का विडियो बनाकर ये लोग सुची को भेजते हैं और कहते हैं की श्रीकांत वैसा ही करे जैसा वे चाहते हैं वरना वो लोग उसकी बेटी की हत्या कर देंगे | बदहवास श्रीकांत मुंबई के लिए रवाना होता है जहां साजिद उसकी बेटी के बहाने उसे ब्लैकमेल करने मौजूद है | श्रीकांत की अनुपस्थिति में जेके और मुत्तू उस उड्डयन संस्थान को खोज लेते हैं जो वस्तुतः तो उड़ान सिखाने का ट्रेनिंग स्कूल है पर वहाँ राज़ी और उसके साथी एक छोटे एयर क्राफ़्ट को बारूद से लैस हमले के लिए तैय्यार कर रहे होते हैं | मुत्तू और जेके ये भूल जाते हैं की ऐसी जगह पर ख़ूंख़ार आतंकवादी भी हो सकते हैं और उनके जाल में फँस कर मरते मरते बचते हैं | मुत्तू तो जैसे तैसे निकल पाता है पर घायल जेके सड़क के किनारे बेहोश हो जाता है | पुलिस के अमले के साथ वापस लौटने पर मुत्तू को ना तो जेके मिलता है और ना ही एयर क्राफ़्ट |
प्रधान मंत्री चेन्नई आ चुकी हैं , और मुलाक़ात का समय तय है | मुंबई में श्रीकांत अपनी बेटी को आतंकवादियों से सुरक्षित छुड़ा पाता है और क्या चेन्नई में पी एम बासु पर होने वाले हमले को रोकने में टास्क की फ़ोर्स कामयाब हो पाती है इसके लिये आप फ़ैमिली मेन सीजन 2 प्राइम वीडियो पर देखें तो बेहतर होगा |
कहते हैं समय का संयोग बड़ा अद्भुत होता है , देखिये ये शृंखला पहले अक्षय कुमार करने वाले थे पर बाद में बजट की मजबूरियों के चलते ये मनोज बाजपेई को मिली जो इसमें ऐसे उतरे हैं की सिरीज़ में आप श्रीकांत नाम के पुलिस अधिकारी को ही पाते हो , मनोज बाजपेई तो नज़र ही नहीं आते | घर की जिम्मेदारियों के साथ फ़र्ज़ के कठिन सफ़र का साथ देता ये शख़्स आपके मन को मोह लेगा | इस सिरीज़ की विशेषता ही यही है कि इसमें हीरो हमेशा जीतता नहीं है | वह अक्सर हारता है , जमाने से हालात से , घर से , बच्चों की ज़िम्मेदारी से और फिर भी इन सब को फिर से समेटने को कोशिश करता अपने फ़र्ज़ को पूरा करने की कोशिश करता है | कभी कभी इस असमंजस के साथ भी , कि वो जो कर रहा है वह वाक़ई देश हित है भी या नहीं | एक जगह पर जेके से वो कहता है , हम किसी राजनीतिक व्यक्ति के लिए काम नहीं कर रहे हैं , हम उसके लिए काम कर रहे हैं जो उस पद पर बैठा है , तो मुझे महाभारत के पात्र भीष्म की याद आ गयी | संयोग से हमें मसूरी में भी यही सिखाया जाता है की एक बार नीति तय हो जाने पर आपका काम उसका क्रियान्वयन करना है उस पर संदेह करना नहीं |
इस शृंखला में एक और नाम है जिसे शुरुआत से अंत तक आप नज़र अन्दाज़ नहीं कर सकते और वो है राज़ी | समांथा ने इस किरदार को ऐसा बखूबी जिया है की क्या कहना | मनोज बाजपेई के बाद वही एक है जिसके न होने पर आप पाते हो की कहानी ख़त्म हो गयी है | अश्लेशा और वेदान्त दोनों बच्चों के रूप में आपको मोहते हैं , अश्लेशा पर तो मुझे बीच में ऐसा ग़ुस्सा आने लगता था जैसे वो मेरी बेटी हो | शरीब हासमी तो जैसे दिलीप कुमार के जानी वाकर हैं , एकदम बिंदास और जीवन्त | शेष पात्रों में भी साहब अली , सनी हिंदुजा , शरद केलकर , रवींद्रन विजय , मीमे गोपी , सीमा बिस्वास , विपिन शर्मा आपको कई दिनों तक याद रहेंगे |
कुलमिलाकर फ़ैमिली मैन की ये शृंखला आम आदमी की कहानी है | इसका हीरो मोटर सायकल से छलांग लगा कर हवाई जहाज़ में नहीं घुस जाता और ना ही मंज़िलों ऊंची इमारत से छलांग लगा कर रस्सी पकड़ नीचे आ जाता है | ये तो अपने घर में पत्नी के ताने सुनता , बच्चों की नाराज़गी झेलता और अफ़सर की डांट सुनता ऐसा इंसान है जिसके जीवन में सफलता और असफलता दोनों हैं , और सफलता साबुत नहीं बल्कि क़ीमत के साथ है , क़ीमत चाहे दोस्त हो , पारिवारिक ख़ुशी हो या बच्चों की सुरक्षा हो | देखे जाने लायक़ बेहतरीन सीजन है और मेरा दावा है की इसके पूरे होने तक आप इसे बीच में अधूरा देख कर नहीं छोड़ पाओगे |
Abhishek Dubey

Abhishek Dubey

A journalist with more than 15 years of experience in investigative reporting