नई दिल्ली
ईरान के कारज शहर के दस्तकार की बिटिया कीमिया अलीजादेह बचपन से अन्य लड़कियों से हटकर कुछ अलग करना चाहती थी। तमाम बंदिशों के बावजूद उसने खेल को अपनाकर ऐसा किया भी और अपनी अलग पहचान बनाई।
रियो ओलंपिक 2016 में अलीजादेह ने वो कर दिखाया जो अभी तक किसी ईरानी महिला ने नहीं किया था। तब 18 वर्षीय अलीजादेह ने ताइक्वांडो के 57 किग्रा भार वर्ग में कांस्य जीतकर इतिहास रच दिया था।
वह ओलंपिक में पदक जीतने वाली अपने देश की पहली महिला बनी। घर वापसी पर नायिका के रूप में सम्मानित किया गया तो सुनामी का उपनाम दिया गया। वह देश की महिलाओं के लिए नई उम्मीद बन गई।
अलीजादेह की उम्मीदों को भी नए पंख लग गए और वह 4 साल बाद टोक्यो में होने वाले ओलंपिक में अपने कांसे को सोने में बदलने के सपने देखने लगी, लेकिन देश के लिए स्वर्ण जीतने का उनका सपना अधूरा ही रह गया।
ओलंपिक से 7 माह पहले जनवरी 2020 में अचानक अलीजादेह खुद को ईरानी की लाखों उत्पीड़ित महिलाओं में से एक बताते हुए देश छोड़कर भाग गई। अलीजादेह ने हिम्मत नहीं हारी और टोक्यो में खेलने के सपने को हकीकत में बदल दिया।
वह ईरान के झंडे तले नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति आईओसी के झंडे तले खेलकर पीला तमगा जीतने की कोशिश करेंगी।आईओसी ने रिफ्यूजियो को जो टीम घोषित की है उसमें अलीजादेह भी है।
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