वर्क फ्रॉम होम से 41% लोगों की रीढ़ हुई कमजोर


स्पाइन यानी रीढ़ को होने वाला किसी भी तरह का नुकसान इंसान को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। ऐसा होने पर मांसपेशियों में कमजोरी, शरीर के कई हिस्सों में दर्द के साथ डिप्रेशन की शिकायत होती है। कोरोना के चलते संस्थानों में वर्क फ्रॉम होम का कल्चर बढ़ा है। इससे भी स्पाइन को खासा नुकसान पहुंच रहा है।

पीएमसी लैब की एक रिसर्च कहती है, कोविड-19 के दौरान वर्क फ्रॉम होम करने वाले 41.2 फीसदी लोगों ने पीठ दर्द और 23.5 फीसदी लोगों ने गर्दन दर्द की शिकायत की। सिटिंग के हर घंटे के बाद यदि 6 मिनट की वॉक की जाए तो रीढ़ को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसके अलावा रोजाना चाइल्ड पोज, कैट और काऊ पोज जैसे योगासन करें। दर्द बढ़ने पर डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

स्पाइनल डिजीज: इससे तन और मन पर पड़ने वाले असर
नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हेल्थ का शोध बताता है कि स्पाइन में गड़बड़ी का असर व्यक्ति पर शारीरिक एवं भावनात्मक दोनों रूप से पड़ता है। पीठ में दर्द की शिकायत: लगातार झुककर बैठने से स्पाइन की डिस्क कम्पैक्ट होने लगती है। साथ ही शारीरिक गतिविधियां कम होने से स्पाइन के आसपास के लिगामेंट टाइट होने लगते हैं। इससे स्पाइन की फ्लैक्सेबिलिटी घटती है। नतीजा, लंबी सिटिंग से पीठ दर्द होने लगता है। कमजोर मांसपेशियां: स्पाइन के जरूरत से ज्यादा फैलाव के कारण पेट और उसके आसपास की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं। ऐसा लंबी सिटिंग से होता है। गर्दन और कंधे में दर्द: स्पाइन को सिर से जोड़ने वाली सर्वाइकल वर्टेब्रा में तनाव पड़ने के कारण गर्दन में दर्द होने लगता है। इसके साथ ही कंधों और पीठ की मांसपेशियों को भी नुकसान पहुंचता है। ब्रेन फॉग की शिकायत: मूवमेंट न होने पर मस्तिष्क में पहुंचने वाले रक्त और आॅक्सीजन की मात्रा घटती है। सोचने की क्षमता प्रभावित होती है। व्यवहार पर असर: ज्यादा देर तक बैठे रहने से न्यूरोप्लास्टिसिटी प्रभावित होती है। न्यूरॉन्स की एक्टिविटी भी कमजोर होती है जिससे व्यक्ति भावनात्मक रूप से कमजोर होता है। डिप्रेशन बढ़ता है। लंबी सिटिंग से रक्त प्रवाह में बाधा: स्पाइन यूनिवर्स के अनुसार, लंबी सिटिंग से ग्लूट्स में ब्लड सकुर्लेशन बाधित होता है। ग्लूट्स स्पाइन को सपोर्ट करने वाली प्रमुख मांसपेशी है। खराब पॉश्चर से कंधे, पीठ, गर्दन में दर्द की समस्या बढ़ती है। बैठे-बैठे झुकने, मुड़ने से रीढ़ के लिगामेंट और डिस्क पर तनाव बढ़ता है। इसके कारण कंधों, गर्दन और पीठ में दर्द होने लगता है। इसे पुअर पॉश्चर सिंड्रोम कहते हैं।

मोबाइल एडिक्शन से डिस्क सिकुड़ती है
जब आप लंबे समय तक स्क्रीन पर काम करते हैं और देखने के लिए सिर को बार-बार झुकाते हैं तो रीढ़ पर खिंचाव पड़ता है, जो स्पाइन की डिस्क को संकुचित करता है।

मजबूत रीढ़ के लिए इन 3 उपायों को अपनाएं
स्पाइन की मजबूती के लिए पेट और पीठ की मांसपेशियों की मजबूती बहुत जरूरी है। ये मांसपेशियां ही स्पाइन को संतुलित और ताकतवर बनाती हैं। ये जितनी मजबूत होंगी स्पाइन पर पड़ने वाले वजन का दबाव उतना ही कम होगा।
    एक्सरसाइज (ब्रिज): जमीन पर लेट जाएं। पंजों पर जोर लगाते हुए हिप्स को उठाकर शरीर को एक सीध में कर लें। 10 से 15 सेकंड तक रुकें। 15 मिनट के तीन सेट करें। प्रत्येक सेट के बीच में एक मिनट का गैप रखें।
फायदे: हिप्स की मांसपेशियां मजबूत होती हैं। लोअर बैक को सपोर्ट करती हैं। रीढ़ मजबूत बनती है।
    योग (चाइल्ड पोज): पंजों पर बैठ जाएं। हथेलियों को फर्श से सटा लें। सांस लेते हुए 1 से 2 मिनट तक इसी अवस्था में रहें। सांस लेते हुए पूर्व अवस्था में आ जाएं। इसी तरह के काऊ और कैट पोज भी उपयोगी हैं।
फायदे: शरीर और रीढ़ में रक्त संचार बेहतर होता है, जांघ, कूल्हे और टखने मजबूत होते हैं। रीढ़ की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
    वॉक: टीवी देखने के दौरान बीच-बीच में वॉक करें। इससे मांसपेशियों की जकड़न घटती है। लचीलापन बढ़ता है।

 

The Naradmuni Desk

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