यूपी में नए सियासी समीकरणों को साधने में जुटी BJP, जानें रणनीति


 नई दिल्ली 
कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ने के साथ ही चुनावी राजनीति फिर से जोर पकड़ने लगी है। बंगाल के चुनाव नतीजों ने जहां भाजपा को मंथन करने के लिए मजबूर किया, वहीं विपक्ष में नई उम्मीदें जगी हैं। अगला बड़ा मोर्चा अगले साल होने वाला उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव है, लेकिन पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भी सियासत गरमा रही है।

मौजूदा राजनीतिक परिस्थतियों में भाजपा दोहरे मोर्चे पर काम कर रही है। इसमें एक तरफ खुद को मजबूत करना शामिल है तो दूसरी तरफ विरोधियों को कमजोर करना है। साथ ही गठबंधन को एक बार फिर से मजबूत करने की भी कोशिशें शुरू हो गई हैं। भाजपा की सबसे बड़ी चिंता उत्तर प्रदेश को लेकर हो रही है। यही वजह है कि गृह मंत्री अमित शाह एक बार फिर सक्रिय हैं और उन्होंने उत्तर प्रदेश की चुनावी रणनीति पर काम शुरू कर दिया है। सहयोगी दलों को साधा जा रहा है। जल्दी ही राज्य मंत्रिमंडल का विस्तार कर आगे की रणनीति पर काम किया जाएगा।

 दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर भाजपा के लिए काफी नुकसानदेह साबित हुई है। इससे देशभर में लोगों की दिक्कतें बढ़ी तो उनका गुस्सा भी सरकार के खिलाफ बढ़ा है। ऐसी स्थिति को काबू करने में समय लगेगा, लेकिन इसके पहले जो चुनाव होंगे उनमें भाजपा को नुकसान हो सकता है। यही वजह है कि भाजपा ने समय रहते खुद को और गठबंधन को मजबूत करने पर काम शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ वह विपक्ष को भी कोई मौका नहीं देना चाहती है।

 उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद को साथ में लाना और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री व शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से प्रधानमंत्री की मुलाकात उसी के संकेत देते हैं। जल्दी ही राजस्थान में सचिन पायलट को लेकर एक बार फिर से नया मोर्चा खुल सकता है। पंजाब में अकाली दल और भाजपा के रास्ते अलग हो चुके हैं, लेकिन दूरी इतनी भी नहीं है कि चुनाव पश्चात साथ न आ सकें। दिल्ली में भाजपा ने हाल में अकाली दल के पार्षद को एक नगर निगम का महापौर भी बनवाया है। फिलहाल अलग-अलग रह कर चुनाव लड़ने में ही दोनों की भलाई है।


 कर्नाटक में भाजपा नेतृत्व कोई जोखिम लेने को तैयार नहीं है। हालांकि वहां पर मुख्यमंत्री येद्दियुप्पा के खिलाफ हर रोज कोई न कोई विवाद खड़ा होता रहता है। फिलहाल पार्टी ने राज्य के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह को बेंगलुरु भेजने का फैसला किया है, ताकि विरोधी गतिविधियों पर लगाम कसी जा सके। पश्चिम बंगाल में चुनाव की हार के सदमे से भाजपा अभी उबरी भी नहीं थी कि उसके बड़े नेताओं ने तृणमूल में वापसी कर चिंताएं बढ़ा दी हैं। मुकुल राय का जाना भाजपा के लिए आने वाले समय में काफी नुकसानदेह हो सकता है।

 मध्य प्रदेश में सरकार ठीक चल रही है, लेकिन पार्टी के अंदर के विवाद बार-बार खड़े होते रहते हैं। हाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ पार्टी में कुछ विरोध के सुर उभरे। यहां तक की कैबिनेट की बैठक के भीतर ही मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के बीच मतभेद की खबरें बाहर आई, लेकिन भाजपा नेतृत्व फिलहाल इन सब बातों को थामने की कोशिश में है।

The Naradmuni Desk

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